ज़िंदगी एक किताब और हम मात्र
एक कलम हैं।
लिखना क्या है मालूम नहीं,
फिर
भी हम लिखते जाते हैं।
पर हर कलम की लिखी कहानी
अज़ीज़, हर कलम की रंगीन स्याही अज़ीज़ है।
और लिखते लिखते बन जाने वाली
सैकड़ों नयी किताबें अज़ीज़ है।
लिखते लिखते एक दिन स्याही ख़त्म
होने को आई तो
कलम ने उस लेखक से पूछा “ये
कैसी किताब लिखवाई है?
कोई दिलचस्प कहानी नहीं है,
कोई बड़ी कामयाबी नहीं है।
हर पन्ना बस एक जैसा,
मेरे
जीवन में कुछ भी सुहानी नहीं है।”
लेखक बोला “मैंने लिखवाया
तुमसे वोही जो तुमसे लिखा जा सकता था। हर रोज़ मर्रे की कहानी में भी,
तू कुछ निराला बना सकता था।
सबकी कहानी मै तो केवल एक ही
तरह लिखवाता हूँ। जैसा कलम चाहता है, मै तो
वैसा ही लिखता जाता हूँ।”
काश कलम को पता होता की ये
जो उसका जीवन है, इसमे लेखक लिखता वो है जो कलम को
लिखने का मन है।
कलम तुम्हारा ये जीवन भी ऐतिहासिक
बन जाएगा, जब रोज़ मर्रा के जीवन में कुछ
निराला तू कर जाएगा।
कोई इसे पढ़े न पढ़े,
तेरा जीवन सफल हो जाएगा, गर स्याही ख़त्म होजाने तक तू मन का गीत लिख जाएगा, बस मन का
गीत लिख जाएगा, बस मन का गीत लिख जाएगा।
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