Thursday, 27 September 2018

ये जुनून-II

मेरा जुनून साहिल है।
साहिल, जो मेरे भीतर है।
जिसमें भीगी हूं मैं। डूबी हूं मैं। आकंठ।
साहिल, जिसका किनारा भी मैं। मौज भी मैं।


साहिल, जिसे सोचकर ही मुस्कुरा लेती हूं मैं।
जिसे बिना देखे भी देख लेती हूं मैं।
जिससे न टकराकर भी, मिल लेती हूं मैं।
साहिल, जिससे होकर गुज़रती हूं मैं रोज़ाना।
साहिल, जो थोड़ा सा मेरे भीतर और उतर जाता है रोज़ाना। 

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